बुधवार, 16 मार्च 2011

221. ये कैसी निशानी है (पुस्तक - 42)

ये कैसी निशानी है

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उम्र की स्लेट पर, वक़्त ने कुछ लकीरें खींच दी हैं 
सारे हर्फ़ उलट-पलट हैं
जैसा कि उस दिन हुआ था
जब हाथ में पहली बार, चॉक पकड़ी थी
और स्लेट पर, यूँ ही कुछ लकीरें बना दी थी
जिसका कोई अर्थ नहीं
लेकिन हाथ में पकड़े चॉक ने
बड़े होने का एहसास कराया था
और सभी के चेहरे पर, खुशियों की लहर दौड़ गई थी
उस स्लेट को उसी तरह, सँभालकर रख दिया गया
एक यादगार की तरह, जो मेरी और
मेरे उस वक़्त की निशानी है
बालमन ने उस लकीर में
जाने क्या लिखा था, नहीं पता
वो टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें, यथावत पड़ी हैं
आज भी समझ नहीं पाती कि
क्या लिखना चाह रही होऊँगी
वक़्त की लकीर तो, रहस्य है
कैसे समझूँ ?
क्या लिखना है वक़्त को, क्या कहना है वक़्त को
स्लेट की निशानी, सिर्फ़ मुझे ही, क्यों दिख रही?
घबराकर पूछती हूँ -
ये कैसी निशानी है
जिसे बचपन में मैंने लिख दी और आज वक़्त ने लिख दी
शायद मेरे लिए 
जीवन का कोई संदेश है
या वक़्त ने इशारा किया कि
अब बस...!

- जेन्नी शबनम (14. 3. 2011)
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