गुरुवार, 15 मार्च 2012

331. चुप सी गुफ़्तगू

चुप सी गुफ़्तगू

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एक चुप-सी दुपहरी में
एक चुप-सी गुफ़्तगू हुई
न तख्तों-ताज 
न मसर्रत
न सुख़नवर की बात हुई
कफ़स में क़ैद संगदिल हमसुखन
और महफ़िल सजाने की बात हुई
बंद दरीचे में
नफ़स-नफ़स मुंतज़िर
और फ़लक पाने की बात हुई
साथ-साथ चलते रहे
क़ुर्बतों के ख़्वाब देखते रहे
मगर फ़ासले बढ़ाने की बात हुई
एक चुप-सी दोपहरी में
एक चुप-सी गुफ़्तगू हुई। 
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मसर्रत - आनंद
नफ़स - साँस
मुंतजिर - प्रतीक्षित
कुर्बतों - नज़दीकी
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- जेन्नी शबनम (14. 3. 2012)
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