सोमवार, 2 अप्रैल 2012

337. तुम्हारा तिलिस्म

तुम्हारा तिलिस्म

*******

धुँध छट गई है
मौसम में फगुनाहट घुल गई है

आँखों में सपने मचल रहे हैं
रगों में हलकी तपिश महसूस हो रही है
जाने क्या हुआ है
पर कुछ तो हुआ है
जब भी थामा तुमने मैं मदहोश हो गई
नहीं मालूम कब
तुम्हारे आलिंगन की चाह ने
मुझमें जन्म लिया
और अब ख़यालों को
सूरत में बदलते देख रही हूँ
शब्द सदा की तरह अब भी मौन हैं
नहीं मालूम अनकहा तुम समझ पाते हो या नहीं
जाने तुमने मेरे मन को जाना या नहीं
या मैं सिर्फ़ बदन बन पाई तुम्हारे लिए
क्या जाने वक़्त की जादूगरी है
या तुम्हारा तिलिस्म
स्वीकार है मुझे
चाहे जिस रूप में तुम चाहो मुझे। 

- जेन्नी शबनम (1. 4. 2012)
___________________