सोमवार, 20 जनवरी 2014

437. पूर्ण विराम (क्षणिका)

पूर्ण विराम

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एक पूरा वजूद, धीमे-धीमे जलकर 
राख़ में बदलके चेतावनी देता- 
यही है अंत, सबका अंत
मुफ़लिसी में जियो या करोड़ों बनाओ
चरित्र गँवाओ या तमाम साँसें लिख दो 
इंसानियत के नाम
बस यही पूर्ण विराम, यही है पूर्ण विराम। 

- जेन्नी शबनम (20. 1. 2014)
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