गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

483. आँखें रोएँगी और हँसेंगे हम (तुकांत)

आँखें रोएँगी और हँसेंगे हम 

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इल्म न था इस क़दर टूटेंगे हम   
ये आँखें रोएँगी और हँसेंगे हम।    

सपनों की बातें सारी झूठी-मुठी
लेकिन कच्चे-पक्के सब बोएँगे हम।    

मालूम तो थी तेरी मग़रूरियत
पर तुझको चाहा कैसे भूलेंगे हम।    

तेरे लब की हँसी पे हम मिट गए
तुझसे कभी पर कह न पाएँगे हम।    

तुम शेर कहो हम ग़ज़ल कहें
ऐसी हसरत ख़ुद मिटाएँगे हम।    

तू जानता है पर ज़ख़्म भी देता है
तुझसे मिले दर्द से टूट जाएँगे हम।    

किसने कब-कब तोड़ा है 'शब' को
यह कहानी नही सुनाएँगे हम।   

- जेन्नी शबनम (5. 2. 2015) 
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